गांधीवादी यात्रा बनाम रेलगाड़ी व साइबर यात्रा

Gandhiwadi yatra
गांधीवादी यात्रा बनाम रेलगाड़ी व साइबर यात्रा Gandhiwadi yatra
हिना आज़मी

Gandhiwadi yatra साइबर यात्रा एक ऐसी परिघटना है, जो भारत जैसे प्रद्योगिकी की दौड़ में पिछड़े हुए समाज में यात्रा करने के विचार में आमूल परिवर्तन कर सकती है। दक्षिण एशिया समिट उपनिवेशवाद से पहले की सभी सभ्यताओं में यात्रा के जरिए ज्ञान और सूचनाओं की उपलब्धि की जाती थी। यात्रियों का सांसारिक समुदाय आमतौर पर वाचिक परंपरा का पालन करता हुआ दूसरे समुदायों के साथ अन्योन्यक्रिया के जरिए जानकारी हासिल करता था।

आधुनिक दुनिया पर दार उल इस्लाम का वर्चस्व था और उस समय हर मुसलमान को कम से कम जिंदगी में एक बार हज करने के लिए मक्का की या फिर दूसरे इस्लामी राज्यों के बारे में जानकारी करने के लिए उन की यात्रा करने का फर्ज अदा करना ही पड़ता था। यात्राएं छापेखाने के बाद पैदा हुए हुए पूंजीवाद के युग की यात्राएं नहीं थी जो क्रिरोल बुद्धिजीवियों ने की थी।

 

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इन यात्राओं में तो मुसलमान यात्री दूसरे मुसलमानों से वंचित संपर्क बनाने पर जोर देते थे। सरहदें इन यात्राओं को सीमित नहीं कर सकती थी, बल्कि यात्रियों की शारीरिक क्षमता ही उनकी सीमा हुआ करती थी। तब समय भी किसी और ही शैली में दर्ज किया जाता था। जल्दी स्वदेश वापसी की कोई सांसारिक अनिवार्यता नहीं थी यात्रीगण कई कई साल बाद लौटते थे।

राष्ट्रवादी यात्राओं के आविष्कार का श्रेय गांधी जी को जाता है

राष्ट्रवादी यात्राओं के आविष्कार का श्रेय गांधी जी को जाता है गांधीवादी यात्रा एक विरोधाभास से शुरू हुई थी, उन्होने रेलवे के नेटवर्क का इस्तेमाल किया था। जबकि गांधी का आरोप था कि रेलवे के प्रभाव के कारण ही यात्रा के प्रारूप निवेशक आख्यान और अनुभव नष्ट हो गए थे। गांधी सबसे ज्यादा पैदल यात्रा को ही महत्व देते थे। पैदल चलने का मतलब था समाज के साथ अन्योन्यक्रिया करने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए अलग भाषा अपनाना, दूसरी संस्कृतियों और जनों के साथ अन्य क्रिया करते रहना।

Railgadi

रेलवे से की जाने वाली आंतरिक यात्राओं के जरिए यह उपलब्धि कभी नहीं हो सकती जाहिर है कि यहां गांधी आधुनिक यात्री या तीर्थयात्री के श्रेयस्कर होने की तरफ सीधा इशारा कर रहे थे, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अपने इन विचारों के उलट उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन में गांधी ने रेलगाड़ी का जमकर इस्तेमाल किया, क्योंकि रेलवे औद्योगिक पूंजीवाद की नुमाइंदगी करती थी।

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