काले धन का अनुमान लगाना मुश्किल

क्रयशक्ति में आएगी अल्पकालिक कमी

नई दिल्ली। काले धन की भारतीय अर्थव्यवस्था में खासी भूमिका रही है क्योंकि यहां तकरीबन 80 से 90 प्रतिशत लेन-देन समानांतर अर्थव्यवस्था का हिस्सा है। मतलब कि हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से संतुलित और व्यवस्थित नहीं है। इतना ही नहीं, राजनीति में भी भारी मात्रा में नकद लेन-देन होता है इसलिए यह अनुमान लगा पाना तकरीबन नामुमकिन है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में काले धन की कितनी भागीदारी है। आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ मनीषा प्रियम सहाय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम कसने के लिए यह एक साहसिक कदम उठाया है।

हालांकि, इसका आम जन-जीवन पर काफी असर हो रहा है, किंतु यह तात्कालिक है। इसके साथ ही आम जनमानस में अब यह उम्मीद भी बंध गई है कि भ्रष्टाचारी, घूसखोर अधिकारियों, नेताओं, व्यवसायियों पर केंद्र सरकार का चाबूक तेजी से चलेगा। उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री के लिए भी बड़ी चुनौती है कि वह कैसे जनमानस की भावनाओं पर अब खरा उतरेंगे। केंद्र सरकार के इस फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर पर मनीषा प्रियम ने कहा कि जिस तरह प्रधानमंत्री ने अचानक मंगलवार की शाम को देश को संबोधित करते हुए 500 और 1000 के नोट को बंद करने का ऐलान किया, उससे आम जनजीवन पर असर पड़ना लाजिमी है। लोगों को असुविधा होगी। इसके साथ ही बैंकिंग व्यवस्था के लिए भी यह एक बड़ा झटका है। कारण यह है कि नोट जमा करना, उन्हें बदलना, एकाउंट दुरुस्त करना इन सब के लिए बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की जरूरत होगी जो मौजूदा समय में बैंकों के पास नही है। साथ ही कुछ दिनों तक बाजार में सुस्ती रहेगी और लोगों की क्रयशक्ति में भी कमी आएगी। हालांकि यह सब कुछ समय की ही बात होगी। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की स्वायत्ता पर भी सवाल उठेगा। आरबीआई के गवर्नर को बताना होगा कि क्या यह उनका पफैसला है। अगर उनका जवाब सकारात्मक है तो ठीक वरना आरबीआई की स्वायत्ता को लेकर भी सवाल उठेगा। हालांकि यह भी अल्पकालिक ही होगा।