बंजर जमीन पर उगी उम्मीदों की फसल

अल्मोड़ा। वन्य जीवों के आतंक और पलायन के जबरदस्त प्रभाव के चलते जिले के सुनौली ग्राम सभा के रिसाल तोक में 20 साल पूर्व बंजर हो चुके खेतों में ग्रामीणों की मेहनत और सकारात्मक सोच के चलते इस बार आलू के फसल लहलहा रही है। जंगली जानवरों के आतंक के चलते पूरी तरह बंजर हो चुके खेतों को ग्रामीणों ने वन विभाग की मदद से चाहरदीवारी बनाकर खेती प्रारम्भ कर दी है। गांव के युवाओं और मजदूरों की सहायता से जब बंजर जमीन खोद कर समतल कर फसल बोई गयी, अब वह आलू की फसल लहलहा रही है। ग्रामीणों की इस कार्यवाही से उन लोगों को बड़ा झटका लगा है जो पर्वतीय काश्तकारों को लापरवाह और निकम्मे बताते हुए जंगली जानवरों के आतंक को एक बहाना मात्र कहते थे। गांव में लहलहाती फसल देख लोगों के चेहरे पर उत्साह दिख रहा है और भविष्य में वह यहां गंडेरी और अदरक की खेती का मन बना रहे हैं।

बिंसर के टाप में बसे सुनोली ग्राम सभा का तोक रिसाल प्रकृति के खूबसूरत क्षेत्रों में एक है। सड़क मार्ग से 6 किमी पैदल दूरी पर स्थित होने के बाद भी यह गांव हमेशा खेत खलिहानों और खेती के मामले में संपन्न रहा। उच्च क्वालिटी के आलूू, गडेरी के अलावा साठे (साव चावल) उगाने वाला यह प्रसिद्ध क्षेत्र था। सारी जमीन तलाउ (प्राकृतिक सिंचाई से युक्त) थी। लोग आर्थिक अभावों के बावजूद वर्ष भर के खाने-पीने के अलावा आर्थिकी अर्जन भी अपनी उपजाऊ जमीन से कर लेते थे। वर्ष 1988 में बिंसर सैंचुरी बनने के बाद सैंचुरी के नियमो का सबसे अधिक कुप्रभाव इसी छोटे से गांव मंे पड़ा। 1993-94 के बाद से सबसे अधिक नुकसान यहां के लोगों ने उठाया सैचुरी में जानवरों की अधिकता होने के बाद उनका आतंक छाने लगा। सैंचुरी के परिधि में आने के कारण जंगली जानवर गांवों में घुसने लगे।

तेंदुए और अन्य हिंसक जानवर जहां पालतू जानवरों पर भारी पड़े तो जंगली सुवरों के झुंड ने फसलों का बर्बाद करना शुरू कर दिया। इस आतंक से लोगों ने खेतो में फसल बोना छोड़ दिया और पलायन की प्रवृत्ति को अपना लिया। वर्तमान मे केवल सात परिवार इस गांव में रहते हैं। ग्राम सभा सुनौली की जमीन भी इस तोक की परिधि में है उन्होंने भी अपनी जमीन को बंजर छोड़ दिया। इस बीच गावं के समाजसेवी ईश्वर जोशी और गांव के कुछ लोगों ने वन्य जानवरों के आतंक से बर्बाद होती खेती की ओर लगातार सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट किया। इस दौरान लोगों ने शुरूवात में उनकी थ्योरी को नकारते हुए यह कहना शुरू कर दिया कि पहाड़ के लोग खेती की ओर लापरवाह हो गये हैं, लेकिन ग्रामीणों ने प्रयास जारी रखे और अंत में वन विभाग ने रिसाल, सुनाली, भैसोड़ी तथा गौनाब में जमीन की घेराबंदी की बात मान घेराबंदी का कार्य शुरू कर दिया। रिसाल में करीब आधा किमी की परिधि में गांव की उपजाऊ और तलाऊ खेती की घेराबंदी पूर्ण हो जाने के बाद अब खेतों में सुवरों का घुसना कठिन हो गया तो गांववालों ने बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के प्रयास शुरू कर दिये। खुद या मजदूरों की मदद से बंजर जमीन पर पफावड़े और गैते चले तो खेत समतल होने लगे।

पानी होने के कारण लोगो ने पहली फसल आलू की वहंा बो दी और शेष खेतों को खोदने का काम शुरू कर दिया। आज खेतों में आलू की फसल लहलहा रही है। गांव वालों के इस प्रयास ने सरकार और खेती छोड़ चुके लोगांे के लिए एक मिशाल कायम कर दी है। निकम्मे ने पहाड़ी कृषक, जंगली जानवरों ने किया है बेहाल अल्मोड़ा। सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर जोशी ने कहा कि अब दूसरे चरण में गांव से पलायन कर चुके लोगों से वार्ता कर उनके खेतों को भी समतल कर उसमें फसले उगाने का लक्ष्य है। साथ ही गांव की परिधि में आने वाले सुनौली के ग्रामीणों के खेत को भी उनसे कह कर खोदा जा रहा है। उन्होंने कहा कि 20 साल तक बंजर रहने के बाद भी जब खेत खोदे गये तो भी उनकी जमीन सोना उगल रही है। उन्होंने कहा कि भविष्य में यहां गढेरी और अदरक भी बोने की योजना है। उन्होंने कहा कि जो लोग पहाड़ी काश्तकारों को निकम्मा और खेती के प्रति लापरवाह बताते हुए जंगली जानवरो के नुकसान से खेती छोड़ने की थ्यौरी को झूठा मानते है यह प्रयास उनके लिए भी सबक है।