पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर भी खतरा मंडरा रहा
हिना आज़मी
खगोलविद वैज्ञानिकों के शोध से यह तथ्य का पता चला है कि करोड़ों साल पहले मंगल ग्रह पर वायुमंडल था। लेकिन वहां के चुंबकीय क्षेत्र के धीरे-धीरे खत्म होने से सौर तूफानों ने उसे तबाह कर दिया और वह खत्म हो गया। अब ऐसा ही संकट पृथ्वी पर आने वाला है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर भी खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव पलट सकते हैं जिससे पृथ्वी पर उथल-पुथल हो जाएगी। इससे इसका चुंबकीय कवच कमजोर पड़ जाएगा। सूर्य की हानिकारक किरणें पृथ्वी के वायुमंडल को चीरती हुई सतह तक आ जाएंगे और मंगल की तरह पृथ्वी के वायुमंडल का विनाश हो जाएगा जिससे यहां जीवन का अंत निश्चित हो जाएगा।
खत्म हो जाएगा पृथ्वी (Earth) का कवच..
नासा वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के कोर में उपस्थित तरल लोहा विशालकाय इलेक्ट्रोमैग्नेट यानी विद्युत चुंबकीय चित्र बर्ताव करता है। जिसके दो चुंबकीय ध्रुव होते हैं उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव। इससे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक यानी विद्युत चुंबकीय करंट पैदा होता है , जो पृथ्वी को एक आवरण के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है। यह पृथ्वी के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र मैग्नेटो स्पेयर तैयार करता है। यह फेयर अंतरिक्ष में हजारों मील तक फैला हुआ है। यह चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की हानिकारक और पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है। इस कवच से पृथ्वी के जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों को सुरक्षा मिलती है। रिसर्च में पाया गया है कि पृथ्वी के कोर में हलचल होने लगी है। कवच पर संकट आने पर पृथ्वी का विनाश निश्चित है।
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शुरू हो गया है पृथ्वी पर बदलाव (Change on earth)
- पुरानी रिसर्च के अनुसार, पृथ्वी के इतिहास में हजारों बार चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव आए हैं , परिवर्तन हुआ है। पृथ्वी के कोर यानी कवच में मौजूद तरल लोहा स्थिर नहीं है। इसलिए पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी चुंबकीय ध्रुव हर दो या तीन लाख वर्षों में आपस में जगह बदल लेते हैं।
- ई.एस. एजेंसी( यूरोपीय स्पेस एजेंसी) के सेटेलाइटों द्वारा एकत्रित किए गए डेटा के अनुसार, प्रत्येक 10 वर्ष में पृथ्वी के चुंबकीय कवच मे 5 फीसद की दर से क्षति होती रहती है जिससे वह कमजोर पड़ता रहता है। यह दर पूर्व अनुमान से 10 गुना ज्यादा है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, पिछली बार यह बदलाव 38 वर्ष पहले हुआ था।
- इस प्रक्रिया में चुंबकीय क्षेत्र धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाता है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अगला बदलाव शुरू हो चुका है।
इसका पृथ्वी पर परिणाम…
दक्षिण अफ्रीका के ऊपर उपस्थित चुंबकीय क्षेत्र सबसे तेजी से कमजोर पड़ रहा है इस क्षेत्र को वैज्ञानिकों ने “दक्षिणी अटलांटिक असंगति” नाम दिया है। इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले उपग्रहों के सर्किट रेडिएशन बढ़ जाने के कारण खराब हो गए । अमेरिका के कोलोराडो यूनिवर्सिटी ऑफ कोलाराडो के अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर यह सारे संकेत सही हैं तो चुंबकीय क्षेत्र के पलटने के बाद पृथ्वी के कुछ क्षेत्र रहने योग्य नहीं बचेंगे क्योंकि सूर्य की हानिकारक किरणें उस जगह को नष्ट बना देगी।
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घटती क्षमता पृथ्वी की (Decreasing capacity of the earth)
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की क्षमता तेजी से घट रही है। भारत के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने 1 वर्ष बाद दावा किया कि हानिकारक किरणों ने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को पीछे धकेल दिया है यह क्षेत्र जो पृथ्वी के अर्धव्यास का 11 गुना अधिक था वह अब सिर्फ 4 गुना रह गया है
तीन वर्षों पूर्व मिले थे संकेत
वर्ष 2015 में सूर्य से निकलने वाली तीर रूपी वेव्स यानी सुपर स्ट्रोम की स्तिथि खड़ी कर दी। लगातार 2 घंटो तक घातक किरणों के गिरने से पृथ्वी के मैग्नेटो स्पेयर में स्थाई दरारें पड़ गई। प्रकाश की गति से अत्यधिक तेज रेडिएशन पृथ्वी पर हुआ। उनसे वातावरण में जियो मैग्नेटिक तूफान उठा ध्रुव के करीब क्षेत्रों में रेडियो सिग्नल ठप्प हो गए।