Circular economy
देहरादून। डासंर, फिल्म प्रोड्युसर, कवयित्री, उद्यमी, पर्यावरण्विद एवं सामाजिक कार्यकर्ता, आरूषि निशंक ने एक नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यशाला सर्कुलर इकोनॉमी इन बिजनेसः अ ब्लू प्रिंट फॉर एक्शन टुवर्डस एसडीजी 12, के दौरान हिमालय के संरक्षण के लिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था ( Circular economy ) की भूमि पर जोर दिया।
कार्यक्रम का आयोजन युनेस्को हाउस में किया गया और आईयूसीएन इण्डिया के कंट्री रिप्रेजेन्टेटिव डॉ विवेक सक्सेना ने ‘ लर्न फ्रॅम नेचरः वॉट कम्स फ्रॉम नेचर, शैल गो बैक टू नेचर ऑर टू द प्रोसेस ऑफ प्रोडक्शन, कंजम्प्शन विषय पर चर्चा करते हुए सर्कुलर अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी दी।
यह एक सही मंच था, जिसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को उठाया गया और हिमालय की पुत्री मिस आरूषि निशंक ने स्पष्ट कर दिया कि वे इस नेक काज के लिए समर्पित हैं। ‘यह कारोबारमें सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर आयोजित मास्टर कार्यशाला का हिस्सा है।
सर्कुलर अर्थव्यवस्था हिमालय के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इसमें व्यर्थ का इस्तेमाल कर कपड़े के बैग और अरोमा एसेन्स आदि बनाए जाते हैं। यह हिमालयी क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न करती है, जिससे क्षेत्र में अप्रवास की समस्या को हल करने में भी मदद मिलेगी।’’
संसाधनों से विकास को प्रोत्साहित किया जाता है
उन्होंने कहा सर्कुलर अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के लिए एक व्यस्थित दृष्टिकोण है, जो कारोबार, समाज एवं पर्यावरण को लाभान्वित करता है। व्यर्थ जो इकट्टा कर इससे सामान बनाने और निपटान करने के दृष्टिकोण के विपरीत इस तरह की अर्थव्यवस्था में पुर्नस्थापनात्मक एवं पुनर्योजी दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया जाता है और उपलब्ध संसाधनों से विकास को प्रोत्साहित किया जाता है।
इसके बाद मिस निशंक ने कहा कि दुनिया को हिमालय में मौजूद सीमित संसाधनों के बारे में जानकारी देना तथा व्यर्थ एवं प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के बारे में जागरुकता बढ़ाना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था।
भारत की आबादी 1.3 बिलियन है जो दुनिया की आबादी का 18 फीसदी हिस्सा बनाती है तथा दुनिया के मात्र 2.4 फीसदी हिस्से में रहती हे, ऐसे में भारत में संसाधनों की कमी होना स्वाभाविक है।
‘‘हमारे प्रधानमंत्री जी के दृष्टिकोण के अनुरूप वांछित आर्थिक परिणाम हासिल करने के लिए हमें संसाधनों की कमी की समस्या को हल करना होगा और विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना होगा।
हिमालय जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा
हमें अपने प्राकृतिक संसांधनों के शोषण को रोकना होगा। हिमालय जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा है। इसे नुकसान पहुंचाने से न केवल मानव आजीविका और खाद्य सुरक्षा बल्कि धरती को भी खतरा पहुंचता है।’’
उन्होंने कहा। आरूषि पर्यावरण प्रेमी हैं, जो लोगों को प्रकृति, विशेष रूप से नदियों के संरक्षण के बारे में जागरुक बनाना चाहती हैं। उन्होंने गंगा सहित भारतीय नदियों की विकृत स्थिति पर रोशनी डाली है।
गंगा को बचाने के उनके प्रयासों से प्रेरित हो कर दुनिया भर के हजारों अब नमानी गंगे परियोजना के साथ जुड़ चुके है। उन्होंने कई कंपोजीशन जैसे गंगा अवतरण धरती पर गंगा के आने की कहानी तथा सजदा एक सूफी शास्त्रीय कथक नृत्य की रचना एवं कोरियोग्राफी भी की है।
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