रूद्रपुर। मोबाइल ने इंसानी जीवन में इस तरह दखल दिया है कि उसकी धीरे धीरे सोचने समझने और सीखने की प्रवृति को समाप्त करके रख दिया है। मोबाइल के अलावा लैपटॉप इंसान के लिए अगर सुविधाजनक रहे हैं तो इसके दुष्परिणाम इंसान को अंधेरे की तरफ ले जा रहे हैं। जहां से फिर निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। इस बावत मनोचिकित्सक ईश कुमार ढल्ला कहते हैं कि मोबाइल के चलते युवा सोसल कटऑफ हो रहे हैं। उन पर इंटरनेट एडिक्शन हावी है। उनमें नींद में कमी और चेहरा उदास बना रहता है। पढ़ाई पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है। सिर दर्द और आंखों में रोशनी की कमी का भी वो शिकार हो रहा है।
यूथ सांइटिस्ट गीतांजलि बताती हैं कि मोबाइल इंसानी जीवन में जरूरी हो गया है, लेकिन इसमें सावधानी बरतनें की जरूरत है। मोबाइल को कभी भी सीधे कान पर लगाकर सुनने से परहेज करें और सोते समय मोबाइल को अपने से करीब पांच मीटर दूरी पर रखें। इसके रिडियेशन का दुष्प्रभाव दिमाग के अलावा दिल पर भी पड़ता है, जो भविष्य के लिए घातक बन सकता है। क्या आपकी लाड़ो आपकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही? कुछ चिड़चिड़ी सी दिखने लगी है? दोस्तों से भी दूर दूर रह रही है? पढ़ाई और खेलकूद से भी परहेज कर रही है? अब धीरे धीरे उसे धुंधला धुंधला भी नजर आने लगा है? अगर यह सभी बातें दुरुस्त हैं तो अविलंब अपने बच्चों को चिकित्सा विशेषज्ञ के पास ले जाएं। चूंकि यह सभी लक्षण हैं तो आपके बच्चे के मन मस्तिष्क और दिल पर मोबाइल एडिक्शन यानि मोबाइल, टैब और स्क्रीन की लत का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
विड़ंबना यह भी है कि फेसबुक पर बच्चों को अपनी पोस्ट पर लाइक अगर कम मिलते हैं तो उनमें मानसिक अवसाद जैसी स्थिति उभरने लगती है। यहीं से आपका बच्चा या बच्ची नशे जैसी प्रवृति की तरफ बढ़ता है और फिर धीरे धीरे वो अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। यहीं से उसके साथ उसके परिजन भी उसका खामियाजा भुगतते हैं। मोबाइल के बिना न रह पाना भी एक तरह का बिना बीमारी वाला रोग है, जो अदृश्य रहते हुए सब कुछ खत्म करने में लगा रहता है। मोबाइल, टैबलेट का अत्याधिक इस्तेमाल बच्चों के मस्तिष्क पर घातक प्रभाव डाल रहा है। चिकित्सकों की मानें तो 08 12 साल से लेकर 16 17 साल तक की उम्र के बच्चे डिप्रेशन, एंजाइटी, अटैचमेंट, डिसॉर्डर और मायोपिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। देहरादून की मनोचिकित्सक डा. श्वेता राजेश्वर बिंदल बताती हैं कि सीआईपी के आंकड़ों पर अगर ध्यान दें तो हर माह इस तरह के सूबे में 100 से अधिक बच्चे आ रहे हैं। जिसका कारण सिर्फ और सिर्फ सेलफोन हैं।
बीमारी के इजाफे में सबसे बड़ा कारण मोबाइल, टैब, लैपटॉप और वीडियो गेम का कंटीन्यू इस्तेमाल है। जिसका बच्चों के मन मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालता है। रिनपॉस की ओर से किए गए शोध में पता चला है कि औसतन एक दिन में दो या इससे अधिक घंटे सेलफोन यूज होता है तो वो बच्चो के दिमाग को संकीर्ण बना रहा है। बच्चों के मस्तिष्क के विकास के अलावा शारीरिक विकास को भी जहां का तहां रोक देता है। चिकित्सक कहते हैं कि बच्चे जब मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो वे उसमें इस तरह खो जाते हैं, मानों अब वही उनकी दुनिया हो।
ब्लू वेल जैसे डेंजर गेम्स के कई बच्चे शिकार हुए हैं। इसके कहर से एक बार जो फंसा वो फंसता चला गया। बच्चों के माता पिताओं की भी आंखे फटी की फटी रह गई। अभी यह बानगी है, इन फ्यूचर ऐसे गेमों का प्रभाव बढ़ेगा जो आपके बच्चों के लिए शुभ संकेत नहीं होगा। सोशल नेटवर्क यानि फेसबुक, ट्विटर, वाट्सअप, मैसेंजर की लत अमूमन हर व्यस्क की अब जरूरत बनता जा रहा है तो यूथ विंग इसे इस्तेमाल कर रही है। अनजान लोगों से रिश्ते और नादानी में अपनी गोपनीय सूचनाओं का आदान प्रदान घातक है। अपराधी प्रवृति के लोग आपके साथ जुड़कर आपको हर तरह ठगने का प्रयास करेंगे।