क्या आप जानते हैं भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ?

Shiv ji

हिन्दु धर्म में आस्था रखने वाले सभी व्यक्ति जानते हैं कि भगवान शिव निराकर हैं, और जब भगवान शिव को संसार की रचना करनी थी, तो उन्होंने भगवान विष्णु को जन्म दिया। एवं भगवान विष्णु का तप करने के लिए कहा, जब भगवान विष्णु तप कर रहे थे तब उनके चारो ओर क्षीर सागर का निर्माण हुआ। वैसे ही भगवान विष्णु के मध्य से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई, जिसके बाद ब्रह्मा भी तप करने लगे, फिर कई लाखो करोड़ों वर्ष बीत गये।
vishnu and brahma
जब भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव की आंख खुली तब दोनो में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई कि उन दोनो में से कौन पहले इस संसार में आया है। तथा उन दोनो में सर्वश्रेष्ठ कौन है? विष्णु देव का कहना था कि ब्रह्मादेव की उत्पत्ति उनसे हुई है, लेकिन ब्रह्मदेव यह मानने से इंकार कर रहे थे। तथा वह विष्णुदेव से कहा रहे थे कि विष्णुदेव की उत्पत्ति उनसे हुई है, और वह ही सर्वश्रेष्ठ हैं। ब्रह्मदेव एवं विष्णुदेव की यह बहस इतनी बढ़ गई कि दोनो में यूद्ध शुरू हो गया। विष्णुदेव और ब्रह्मदेव दोनो ही बहुत शक्तिशाली थे।
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इस कारण इनका यूद्ध लगभग 10 हजार वर्षों तक चलता रहा है। जब भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव का यह युद्ध रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था तब भगवान शिव अनंत ऊर्जा के रूप में उन दोनो के बीच प्रकट हुए व तभी आकाशवाणी हुई कि तुम दोनो में से जो कोई पहले इस ऊर्जा स्तम्भ का आरम्भ या अंत पा लेगा वह ही सर्वश्रेष्ठ कह लायेगा। यह आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु ऊर्जा स्तम्भ के नीचे की ओर गये और ब्रह्मदेव ऊपर की तरफ जब कई साल बीत गये और विष्णुदेव को न अंत मिला और न ही आरम्भ, तब विष्णुदेव अपने मूल स्थान पर आ गये। और उन्होंने भगवान शिव से कहा कि हे भगवन आप अनादि हो, अनंत हो, आपके स्वरूप को ढूंढना मेरी मुर्खता थी। मुझे क्षमा कीजिए भगवंत मैं आप का स्वरूप जा चुका हूं।
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दूसरी तरफ ब्रह्मदेव निरंतर ऊपर की तरफ प्रस्थान कर रहे थे। वे किसी भी हाल में भगवान विष्णु से सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाहते थे लेकिन उन्हे भी स्तम्भ का न तो आरंभ मिल रहा था और न ही अंत। काफी थक जाने के बाद भी ब्रह्मदेव लगातार ऊपर की तरफ प्रवास कर रहे थे तब उन्हे रास्ते में धतुरे का फूल दिखा। ब्रह्मदेव ने उस फूल से कहा कि मैं तुम्हे भगवान शिव के पास ले जांऊगा और उन्हे कहूंगा कि मुझे इस ऊर्जा स्तंभ का आरम्भ मिल गया है। और इस बात के तुम चश्मदीद गवाह हो, तब तुम सिर्फ इस बात की स्वीकृत देना व इस बात के लिए मै तुम्हे श्रृष्टि में उच्च स्थान प्रदान करूंगा। तब धतूरे का फलू इस बात के लिए राजी हो गया।
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तब ब्रह्मदेव उस फूल को लेकर भगवान शिव के पास आये, और उन्होंने भगवान शिव से कहा कि मुझे स्तम्भ का आरम्भ मिल गया है, एवं यह फूल इस बात का गवाह है। ब्रह्मदेव की यह बात सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गये। तब उन्होंने ब्रह्मदेव से कहा कि इस ऊर्जा स्तम्भ का न कोई आरम्भ है और न ही अंत है, मैं अनंत हूं, परिपूर्ण हूं, चराचर हूं, व्यापक हूं, मै ही संपुर्ण हूं, मैं ही अपूर्ण हूं, सत्य भी मैं हूं, असत्य भी मैं हूं, ज्ञान भी मै हूं, अज्ञान भी मैं हूं, भाव भी मैं हूं अभाव भी मैं हूं, शक्ति भी मैं हूं भक्ति भी मैं हूं, जो कुछ भी नहीं वह भी मैं हूं और जो सबकुछ हैं वह भी मैं हूं।
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भगवान शिव की यह बात सुनकर ब्रह्मदेव को अपनी भूल को बोध हुआ, लेकिन इस अपराध के लिए भगवान शिव ने ब्रह्मदेव को श्राप दिया कि उन्हे इस संसार में कहीं भी कोई भी नहीं पूजेगा। इस प्रसंग के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव ने भगवान शिव से यह विनती कि वह उनके साथ एक साकार रूप में रहे। तब विष्णुदेव और ब्रह्मदेव की विनती को मान देते हुए उस ऊर्जा स्तंभ से आपने साकार रूप को प्रकट किया।
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वैसे ही दोस्तो पूराणो में एक और कहानी है जिसके अनुसार एक ऋषि ने महादेव से पूछा कि उनके पिता कौन हैं। तब महादेव ने जवाब दिया था कि ब्रह्मदेवस ही उनके पिता हैं। तब ऋषि ने फिर पूछा की ब्रहमदेव के पिता कौन है? तो महादेव ने जवाब दिया कि भगवान विष्णु ही उनके पिता हैं। इस जवाब के बाद ऋषिमुनि ने फिर पूछा कि विष्णुदेव के पिता कौन है? तब महादेव ने बताया कि वह स्वयं ही विष्णुदेव के पिता हैं। महादेव की यह बात सुनकर ऋषि भ्रहमित हो गये। और ऋषि को यह बात समझ आ गई कि महादेव के जन्म का रहस्य जानना असंभव है।