भोपाल गैस त्रासदीः 32 साल, हजारों लाशे, जख्म हरा का हरा

बैंगलोर। 3 दिसम्बर 1984 की रूह कांपा देने वाली वह मौत का मंजर जिसे आज 32 साल भी जब प्रत्यक्षदर्शी उसे याद करते हैं तो उनके रोंगटे खड़े हो जाते है। और जिसे सुनकर ही लोगो में दहशत पैदा हो जाती है। जरा सोचिए जिसके बारे में सिर्फ सुनकर ही लोगो में दहशत हो जाए वह मंजर कैसा होगा। जिसमें हजारो की संख्या में बच्चे, बूढे़, जवान, औरते की चीख पुकार की आवाज आ रही हो और प्रत्यक्षदर्शी सिर्फ उनकी चीख पुकार सुनने के सिवा और कुछ न कर पाये हैं जिसके अपने परिवार के सदस्य उस गैस त्रासदी के चपेट में आकर काल का ग्रास बन गये हो। जिसे आज पूरा देश भोपाल गैस त्रासदी के नाम से याद कर है। आज 32 साल बाद भी उन हजारों लोगो की मौत सवाल करती होगी कि आखिर हमारी मौत का जिम्मेदार कौन है और उसको सजा क्यों नहीं हुई?

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हिन्दुस्तान के इतिहास का यह काला अध्याय भोपाल शहर में 3 दिसम्बर 1984 को एक भयानक दुर्घटना हुई। जिसे आज भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस त्रासदी का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन भी इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसके जाने के बाद भी इस त्रासदी के शिकार लोगों के परिवार का दर्द अभी तक कम नहीं हुआ है। यह घटना भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कम्पनी में हुआ था। यह त्रासदी एक हानिकारक गैस के रिसाव से हुआ था। जिसमे लगभग 15 हजार से अधिक लोगों की जान गई थी और काफी लोग अंधेपन के शिकार हुए थे। वहीं प्रदर्शकारियों का कहना है कि इसमें 25 हजार लोग मारे गये थे।
ये भयानक घटना तब घटी जब आधी रात को पूरा भोपाल चैन की नींद सो रहा था तभी अचानक यूनियन कार्बाइड नामक कम्पनी के कारखाने में टैंक नंबर 610 में एक विस्घ्फोट हुआ, जिससे रिसने वाली जहरीली गैस ने लगभग 15 हजार लोगों को मौत की नींद सुला दिया।

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मिली जानकारी के अनुसार उस रात यूनियन कार्बाइड नामक कम्पनी के कारखान में टैंक नंबर 610 का तापमान मापने वाला मीटर खराब हो गया, जिससे निकलने वाली जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में पानी मिल गया जिसके कारण टैंक में दबाव पैदा हो गया और वो फट गया जिससे हजारों लोागे को मौत की घाट उतार दिया। इस टैंक से निकलने वाली जहरीली गैस ने मात्र तीन मिनट में हजारो लोगो को मौत की नींद सूला दिया था। 3 दिसंबर की सुबह चारों तरफ लाशे ही लाशे थीं, इस त्रासदी में जो बच गए थे वो भी अपने आपको अभागा ही मान रहे थे क्घ्योंकि, उनके पास गले लगकर रोने वाला भी कोई नहीं बचा था।

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इस भयंकर कांड में हजारों लोगों की जान जाने के बाद यूनियन कार्बाइड ने शुरू से ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। लोगों के काफी हो-हल्ला मचाने पर इस त्रासदी की फाइल खुलने में 25 साल लग गये। साल 2010 में न्यायालय के फैसले ने इस त्रासदी के शिकार लोगों के परिवारो पर मरहम नहीं लगा सक, क्योंकि न्यायलय ने 7 दोषियों को 2 साल की सजा एवं एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया। सजा सुनाने के कुछ देर बाद ही सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस हादसे के मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन घटना के चार दिन बाद वहां पहुंचे, और उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जमानत मिलने के बाद वह स्वदेश चले गए और फिर कभी मामले की सुनवाई के लिए वापस नहीं आए। भारतीय अधिकारियों ने उनके प्रत्यर्पण के लिए कई बार अनुरोध किया, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली।adorsan
यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन के खिलाफ हर व्यक्ति में जबर्दस्त गुस्सा था। सभी का यही मानना था कि वहीं इन हजारों लोगों का खुनी हैं। वहीं अगर हम कर्जमैन की लिखी किताब ‘किलिंग विंड’ की बात करे तो इसके मुताबिक एंडरसन को भगाने में उस वक्त की सरकारी तंत्र का हाथ था। किताब के मुताबिक एंडरसन को स्पेशल विमान के जरिए पहले भोपाल से दिल्ली लाया गया था और फिर कुछ जरूरी कागजात पर साइन कराकर उसे स्वदेश भेज दिया गया था।