नई दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को यहां तकनीक से हो रहे नुकसान पर चिंता जताते हुए कहा कि इस बात का आॅडिट होना चाहिए कि कृषि में तकनीक के इस्तेमाल से क्या बदलाव आ रहा है । उन्होंने मधुमखी पर कीटनाशकों के प्रभाव का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रकृति के विभिन्न घटकों के बीच के संबंध को समझाना और उसमें तालमेल बनाना जरूरी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को यहां पहली बार भारत में होने वाली प्रथम अंतर्राष्घ्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए कहा कि प्रकृति में हमारे दखल से ही जालवायु परिवर्तन की समस्या पैदा हुई है। हमारी इसी गलती का परिणाम है कि आज विश्व का तापमान बढ़ रहा है जो जैव विविधिता से लिए सबसे बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता की सुरक्षा का सही अर्थ है कि उसके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना।श्री मोदी ने कहा कि यूएन का मानना है कि जैव विविधता में संस्कृतियों की महत्ती भूमिका रही है। हमे भी अपनी संस्कृति से बहुत कुछ सिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे उनके संस्कार जनित प्रयासों का ही नतीजा है कि हम जैव विविधता और सबकी जरूरत पूरा करने में अबतक कामयाब होते रहे हैं।
श्री मोदी ने कहा कि कृषि जैवविविधता कांग्रेस की पिछली कुछ शताब्दियों में जैव विविधता को बहुत ज्यादा नुकसान छेलना पड़ा है । उन्होंने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा जैव विविधता पाई जाती है जिसके संरक्षण की दिशा में काम करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों से हमें मिले ज्ञान ने स्पष्ट किया है कि जीव जंतुओं का महत्व मनुष्य के महत्व से कम नही है। उन्होंने कहा कि यूएन से आग्रह किया कि वह विश्वभर की संस्कृतिक दरोहर में छिपी जैव विविधता को सुरक्षित रखने की तकनीकों का एक डाटाबेस तैयार करे ताकि उनमें से बेहतर तकनीकों का दूनिया के अन्य भागों में भी उपयोग में लाया जा सके। इस अवसर पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि कृषि में जैव विविधता ही इस क्षेत्र के विकास का आधार है। इनके प्रयोग के चलते ही हमें नई पीढ़ी के बीज तैयार करने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि भारत में जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई तरह से और कई संस्थान प्रयासरत हैं ताकि कृषि, किसान और आमजन का हित संरक्षित हो और सबके लिए भोजन का प्रबंध हो सके।प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन जिन्हें कार्यक्रम के दौरान अंतरराष्ट्रीय खाद्य पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया उन्होंने कहा कि इस कांग्रेस का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि हम ज्ञान को साझा करें। इससे जुड़े कई क्षेत्रों में अपनी जानकारी बड़ा सकते है। उन्होंने कहा कि अपफगानिस्तान में लड़ाई के जलते वहां जैव विविधिता को कापफी नुकसान पहुंचा है और भारत उसकी भरपाई में उसकी सहायता कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत ने खाद्य सुरक्षा की दिशा में काम किया है अब यह पोषकता की दिशा में बड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व में यह साल दालों को समर्पित किया है। हम चाहते हैं कि आने वाले वर्ष को यूएन जैव विविधता को समर्पित करे।बाॅयो डायवर्सिटी इंटरनेश्नल की एनन टूटवायलार ने कहा कि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से निपटाने के लिए यह कांग्रेस महत्वपूर्ण है।
श्री मोदी का इस दिशा में किया गया कार्य सराहनीय है। हमें किसानों के साथ मिलकर खाद्य समस्या और उनके हितों की रक्षा के लिए काम करने की जरूरत है। उन्होंने भारत को आमंत्रित को इस दिशा में उनके साथ मिलकर काम करने का निमंत्रण भी दिया।वहीं कृषि विज्ञानिक डाॅ. आरएस पुरोधा ने कांग्रेस में सबका स्वागत करते हुए कहा कि पहले मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर चलता था लेकिन आबादी बढ़ने, लालच और अंधाधूंध शोषण के चलते जैव विविधता को भारी नुकसान झेलना पड़ा है । ऐसे में अब हमारी जिम्मेदारी बनती है और यह कांग्रेस इस जिम्मेदारी को निभाते हुए कांग्रेस के अंत में इस दिशा में ‘नई दिल्ली घोषणा’ जारी करेगी।इस अवसर पर जैव विविधता से जुड़ी पाठड्ढ सामग्री का भी विमोचन किया गया। इसके अलावा विश्व खादय पुरस्कार दिए गए।उल्लेखनीय है कि प्रथम अंतर्राष्घ्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस- आईएसी 2016 का आयोजन 6-9 नवंबर 2016 तक नई दिल्घ्ली में किया जा रहा है। इस कांग्रेस में 60 देशों से लगभग 900 प्रतिनिधि भाग लें रहे है। इस अंतर्राष्घ्ट्रीय कांग्रेस में कृषि जैवविविधता प्रबंधन और आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण में प्रत्घ्येक व्घ्यक्घ्ति की भूमिका के बारे बेहतर समझ विकसित करने से संबंधित चर्चा की जायेगी।प्रथम अंतर्राष्घ्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस का आयोजन नई दिल्घ्ली में करना इसलिए भी महत्घ्वपूर्ण है क्घ्योंकि भारत में ईसा पूर्व 9000 वर्षों से खेती और पशुपालन का कार्य आरंभ हो चुका था।
भारत में विशिष्घ्ट पौधों और जीवों की विविधता होने के कारण यह महत्घ्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। इसके अतिरिक्घ्त 34 वैश्घ्विक जैवविविधता हाॅटस्घ्पाॅट में से चार भारत में स्घ्थित है- हिमालय, पश्घ्चिमी घाट, उत्घ्तर-पूर्वी और निकोबार द्वीप समूह। इसके अलावा भारत, पफसलीय पौधों की उत्घ्तपति का विश्घ्व के आठ केंद्रों में एक प्रमुख केंद्र र्है औ वैश्घ्विक महत्घ्व की कई पफसलों की विविधता का द्वितीयक केंद्र है।विश्घ्व की बढ़ती आबादी की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में कृषि जैवविविधता के संरक्षण से टिकाऊपन बनाए रखने पर इस अंतर्राष्घ्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस में प्रकाश डाला जायेगा। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के साथ ही वर्ष 2050 तक 9.7 अरब वैश्घ्विक आबादी (यून डेसा, 2015) की 70 प्रतिशत अतिरिक्घ्त मांग को पूरा करने के लिए टिकाऊ कृषि उत्घ्पादन के विषय में भी चर्चा जायेगी।कांग्रेस में जीन बैंकों के प्रभावी और कुशल, आनुवंशिक संसाधनों के क्षेत्रों में विज्ञान आधारित नवोन्घ्मेष, आजीविका, पफसल विविधता के माध्घ्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा, अल्घ्प ज्ञात पफसलों के प्रयोग और पफसल सुधार में जंगली पफसल संबंधितों की भूमिका को शामिल करना, संगरोध से संबंधित मुद्दें, जैव रक्षा व जैवसुरक्षा और ज्ञान संपदा अधिकारों तथा जननद्रव्घ्य आदान-प्रदान करने के संदर्भ में पहुंच तथा लाभ साझा करने जैसे मुद्दों पर चर्चा ओर ज्ञान साझे किये जाएंगे। इस कांग्रेस के दौरान कृषि जैवविविधता के प्रभावी प्रबंधन एवं उपयोग में समस्घ्त हितधारकों की भूमिका पर चर्चा हेतु जनमंच विकसित करने की भी योजना है।