मजबूर की आत्महत्या से मीडिया को मिलती टीआरपी

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मजबूर की आत्महत्या से मीडिया को मिलती टीआरपी Suicide in india

हिना आज़मी

आज के युग में मानवता की कड़ियां टूटती नजर आ रहे हैं,  जहां सबको अपनी-अपनी पड़ी है । अपने फायदे के लिए लोग कुछ भी कर सकते हैं। मीडिया भी अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इस काम में अपना पूरा सहयोग दे रही है।  जब कोई घटना घटती है , तो मीडिया उसे सनसनी रूप दिखाकर परोसती है। उदाहरण के लिए, जब किसी लड़की का दुष्कर्म हो जाता है, तो उस पर उससे कैसे – कैसे सवाल किए जाते हैं।

 

कोई आपदा या दुर्घटना होने पर यदि एक व्यक्ति जिसका परिवार खत्म हो गया है और वही बचा है, तो उससे भी ऐसे -ऐसे प्रश्न किए जाते हैं, जो उसके दिल को ठेस पहुंचाए।  कोई अपाहिज अगर किसी कॉन्टेस्ट को जीत ले, तब भी उसको तरह -तरह की बातों से यह एहसास कराया जाता है कि वह आखिर है तो अपाहिज। एक और उदाहरण है जिसमें मीडिया ने अपनी टीआरपी के लिए मानवता की सीमा लांघी है।

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बात पिछले दशक की है जब सारे अखबारों ने एक खबर लगभग एक जैसी छापी थी।  खबर गया के मनोज मिश्र के ‘आत्मदाह ‘ की थी। खबर में दो बातें प्रमुखता से उभरी| पहले यह कि मनोज को आत्मदाह की प्रेरणा देने में किसी मीडिया चैनल का हाथ था। एक खबर जहां बताती है कि 1 चैनल के मीडिया कर्मी ने मनोज की तोलिया को डीजल से भिगोने में मदद की, दूसरी खबर है कि पुलिस ने किसी अज्ञात मीडिया कर्मी के खिलाफ केस दर्ज किया है।

मीडिया मर्यादा तोड़ती नजर आ रही

पहली खबर तो चौकाती है,  दूसरी खबर पहले से ज्यादा चौंकाने वाली है। ऐसी गड़बड़ पिछले  कुछ वर्षों से बढ़त पर है , जहां मीडिया मर्यादा तोड़ती नजर आ रही है। यह क्यों है ? क्या कारण है?  क्या उपचार है?  यह सवाल उठते हैं , प्रस्तुत प्रसंग में यह सवाल मीडिया के हर संस्थान में उठने चाहिए । जब आत्मदाह की ख़बर ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह जोड़ी जा रही थी, तभी एक चैनल ने इस खबर को बनाने में अपनी गैर जिम्मेदारी  दिखाते हुए  यह किया कि मीडिया ने आत्महत्या करवाई है।

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टीआरपी के खातिर कुछ भी दिखा सकती है। यह पेशे  के साथ बेईमानी है , क्योंकि लगभग सभी चैनल ऐसी खबरों को अपने-अपने ढंग से एक्सक्लूसिव बना कर देते हैं, इसलिए यह पता करना मुश्किल हो जाता है, कि किस चैनल में इस कांड की खबर पहले लगाई। हालांकि  टीआरपी बढ़ाने के अनंत बेहतर और संभव तरीके हैं। समाज खबरों से कल बनाता रहता है ।

 

खबर देने वाले नजर होने चाहिए मौलिक खबरों की कमी नहीं है। उनकी प्रस्तुति सवारी जाए तो खबरों का बाजार एक नए स्तर पर पहुंचे। मगर नई खबर प्रयोग कोई नहीं करता खबर बनाने के लिए, आपेक्षिक मेहनत कोई नहीं करता , बस खबर की उंगली पकड़ ली जाती है ,शूट किया जाता है ,दिखाया जाता है और खेल खत्म। मीडिया को मानवता के हित में कार्य करना होगा जो उसका धर्म है और कर्तव्य है।

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