डिजिटल याददाश्त बना राजनीति का अखाड़ा

Politics in social media
डिजिटल याददाश्त बना राजनीति का अखाड़ा Politics in social media
हिना आज़मी

आज ( Politics in social media ) सोशल मीडिया राजनेतिक नेताओं को चर्चाओं में ला रहा है। यहं किसी के जनमत निर्माण का साधन बन रहा है लेकिन हमारे समाज में हो रहे मसलों को भी उजागर कर रहा है। हाल ही में दो गैंगरेप केस की घटनाएँ मीडिया में उजागर हुई। 8 साल की बच्ची को भी राजनितिक सियासत ने नही बक्शा है। ऐसे राजनेताओं के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के लिए और लोगों की राय समझकर एक जुट होने में सोशल मीडिया ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है।

राजनेताओं की सबसे बड़ी सुविधा खत्म हो रही है। लोगों की सामूहिक विस्मृति का इलाज जो मिल गया है। जॉर्ज ऑरवेल 1984 ने लिखा था कि अतीत मिट गया है, मिटाने वाली रबड़ खो गई है, झूठ ही सच है। ऑरवेल के बाद दुनिया बहुत तेजी से बदली अतीत मिटा नहीं, रबड़ खोई नहीं, झूठ को सच मानने की उम्र लंबी नहीं रही।

लोगों की कमजोर याददाश्त ही नेताओं की सबसे बड़ी जीत

लोगों की कमजोर याददाश्त ही नेताओं की सबसे बड़ी जीत है। लोगों को सामूहिक तौर पर याद करना और घूमना दशकों तक नेताओं के इशारों पर होता था, लेकिन अब बाजी पलटने लगी है। वह सूरत नही  रही है कि अगले कुछ वर्षों में इंटरनेट राजनीति ( Politics in social media ) का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा। सरकारें सोशल मीडिया सहित इंटरनेट के पूरे परिवार से बुरी तरह खफा होने लगी हैं।




इंटरनेट लोगों का सामूहिक अवचेतन है। यह ना केवल करोड़ों लोगों की याददाश्त है, बल्कि उसकी ताकत पर लोग समूह में सोचने वह बोलने लगे हैं। तकनीकी आम लोगों के लिए बदली है। राजनीतिक के तौर-तरीके तो पुराने ही है झूठ और बड़बोलेपन तो जस के तस हैं। दूरदर्शिता और दूर की कड़ी के बीच विभाजक रेखा और धुंधली हो गई है।

राजनेता चाहते हैं लोग उन्हें समूह में सुने, लेकिन अकेले में सोचें

राजनेता चाहते हैं लोग उन्हें समूह में सुने, लेकिन अकेले में सोचें। अगर समूह में सोचें, तो सवाल ना करें अगर सवाल हो, तो उन्हें दूसरों समूह से साझा ना करें, सवाल अगर सामूहिक भी हो तो वह केवल इतिहास से पूछे जाएं, वर्तमान को केवल धन्य भाव से सुना जाए।




दकियानुसी राजनीति और बदले हुए समाज का रिश्ता बड़ा रोमांचक है। इस बातूनी बहसबाज और खुद ही समाज पर कभी-कभी नेताओं को बहुत दुलार आता है, लेकिन तब क्या होता है जब यही समाज पलटकर नेताओं के पीछे दौड़ता है?  लोगों की सामूहिक डिजिटल याददाशत राजनीति के लिए सुविधा नहीं बल्कि समस्या बन गई है।

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