परहित चिंतन बनाये महान

Pervasive contemplation
Pervasive contemplation बनाये महान

यह परामर्श तेजी से लोकप्रिय हुआ है कि मनुष्य अपने को देखें, अपने बारे में सोचें। ऐसा विचार कितना व्यवहारिक है, इसका आकलन करना बहुत मुश्किल है। आज तक सभी सुखी हो जैसी कामनाएं ही सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसे तर्क बहस और सभ्यता की बनाई हुई परिधि से लगभग बाहर कर दिया गया है। यदि सभी आत्म केंद्रित हो जाए तो मानवता कहां बचेगी?

समाज , समाज में रहकर लोगों का झुंड बन जाएगा। मनुष्य को जीने के लिए जिन परिस्थितियों की जरूरत होती है, उनका निर्माण वह अकेले अपने बल पर नहीं कर सकता। उसे स्वच्छ पर्यावरण चाहिए, पौष्टिक आहार चाहिए, पारस्परिक विनिमय का सुनिश्चित तंत्र चाहिए, सुरक्षा और सुनिश्चितता चाहिए।

मनुष्य लेना बहुत कुछ चाहता है लेकिन देना कुछ नहीं चाहता

आज मनुष्य जिस परिवेश में रह रहा है उसे बनाने में जाने-अनजाने कितने लोगों का योगदान हो रहा है। कहीं तो पेड़ लग रहे हैं, कोई तो जल का संरक्षण कर रहा है, चलिए मानवता के लिए कोई तो चल रहा है। अपने तक ही सीमित हो जाना उस प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करता है, जो सर्वहित में चल रही होती है।




मनुष्य लेना बहुत कुछ चाहता है लेकिन देना कुछ नहीं चाहता। यह एक तरह की अकर्मण्यता भी है। इसी कारण आज समस्याओं के अंबार लग गए हैं। यह समझना होगा कि मानव वास्तव में वह भौतिक स्वरूप नहीं है। जो दिख रहा है मनुष्य एक अंतर्चेतना है। जो उसके भौतिक स्वरूप को सजीव और गतिशील कर रही है।

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