वर्तमान शिक्षा प्रणाली का रूप

Education system
वर्तमान शिक्षा प्रणाली ( Education system ) का रूप
हिना आज़मी

Education system शिक्षा ही मानव को मानव बनाती हैं। शिक्षा के बिना उसका जीवन पशु समान होता है। मानव और पशु में यही अंतर है कि मानव स्वयं शिक्षा ग्रहण करता है और दूसरों को शिक्षा देता है, जबकि पशुओं में गुणों का अभाव रहता है। आजकल सरकारी, अर्ध सरकारी या  स्वतंत्र रूप से चलने वाली असंख्य प्रारंभिक पाठशाला हैं जहाँ  बच्चे शैशव- काल में वहां भेजे जाते हैं और निर्धारित पाठ्यक्रम, क्रीड़ा क्रम और मनोरंजन क्रम से उन्हें शिक्षा दी जाती है।

प्राइमरी पाठशाला  में उनकी शिक्षा की अवधि तक  लगभग 5 वर्षों में बच्चों को सामान्य विषयों का प्रारंभिक परिचय करवाना होता है। शिक्षा को तीन स्तरों में बांटा गया है प्राथमिक ,माध्यमिक ,उच्च शिक्षा। प्रत्येक देश के भावी नागरिक विद्यार्थी ही होते हैं| देश की आशा देश के नवयुवकों पर होती है। नवयुवकों की जैसी शिक्षा व्यवस्था होगी, देश का भविष्य भी वैसा ही होगा। प्रत्येक देश का उत्थान, उसकी शिक्ष और  विद्यार्थियों पर आधारित होता है।

देश की उन्नति- अवनति उसकी शिक्षा पर ही निर्भर करती है, इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। हमारे देश में शिक्षा अब ज्ञान देना नहीं बल्कि व्यवसाय बनकर रह गई है। कॉलेज- यूनिवर्सिटी आदि में युवकों को मोटी फीस के अलावा डोनेशन रूपी हफ्ता भी देना पड़ता है। सरकारी स्कूलों की बात करें तो वहां बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है। अगर भारत के शिक्षा के संदर्भ में ऐतिहासिक परिदृश्य को देखें तो हम पाएंगे कि पाश्चात्य सभ्यता के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली ( Education system ) राज्यव्यवस्था और भौतिकता बढ़ती चली आ रही है और मानव जीवन का लक्ष्य नाम मात्र  ही रह गया है।

भौतिक उन्नति ही आधुनिक शिक्षा ( Modern education ) का लक्ष्य

अतः इस शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य भौतिक उन्नति तक ही सीमित होकर रह गया है। आज की शिक्षा का मुख्य  लक्ष्य यह है कि शिक्षित होकर भौतिक जीवन को सुखमय बनाया जाए। भौतिक उन्नति ही आधुनिक शिक्षा का लक्ष्य है। शिक्षा प्रणाली के नियम भारत में अंग्रेजों ने दिए थे। उन्हें राजकीय कार्यालय में काम करने के लिए सस्ते कर्मचारियों की आवश्यकता थी, जो भारत में ही मौजूद थे जरूरत थी उन्हें पढ़ाने की।




देश के आजाद हो जाने पर हमें ऐसी शिक्षा पद्धति की जरूरत है जो देश के लिए अच्छा नागरिक कुशल कार्यकर्ता और भावी सेनानी उत्पन्न कर सके। जो प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृति,क राजनीतिक शक्तियों के विकास में  पूर्ण योगदान दे सके| आज का प्रबुद्ध छात्र वर्ग इस घिसी -पिटी शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के लिए स्वयं जाग उठा है। वह चाहता है कि उसे बेरोजगारी का शिकार ना बनना पड़े |वह चाहता है कि उसकी शिक्षा व्यवहारिक और रचनात्मक हो, तो सरकार को भी उसकी मंशाओं को लेकर योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने की जरूरत है।

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