स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य क्रान्तिकारी थे अशफाक उल्ला खाँ

asfaq ulla khan
देहरादून। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफाक उल्ला खाँ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। वे पं रामप्रसाद बिस्मिल के विशेष स्नेहपात्र थे।  राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफाक उल्ला खाँ भी शायरी करते थे। अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफाक उल्ला खान थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। उनका उर्दू तखल्लुस उपनाम ‘हसरत’ था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में आलेख व कवितायें करते थे।

जरा इसे भी पढ़ें : मुस्लिम हुए जागरूक, अब सिर्फ धर्मगुरूओं के कहने नहीं अपने विवेक से करते हैं वोट

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण है।वे कविता भी करते थे। उन्होंने बहुत ही अच्छी-अच्छी कवितायें, जो स्वदेशानुराग से सराबोर हैं, बनाई है। कविता में वे अपना उपनाम हसरत लिखते थे। वे अपनी कविताओं को प्रकाशित कराने की चेष्टा नहीं करते थे। कहते-हमें नाम पैदा करना तो है नहीं । अगर नाम पैदा करना होतातो क्रान्तिकारी काम छोड़ लीडरी न करता ? आपकी बनाई हुई कविताएं अदालत आते-जाते अक्सर काकोरी के अभियुक्त गाया करते थे। श्री अशफाक उल्ला खां वारसी हसरत ‘शाहजहांपुर के रहने वाले थे।

इनके खानदान के सभी लोग को शुमार वहां के रईसों में है। बचपन में इनका मन पढ़ने लिखने में न लगता था।खनौत में तैरने, घोड़े की सवारी करने और भाई की बन्दूक लेकर शिकार करने में इन्हें बड़ा आनन्द आता था । बड़े सुडौल, सुन्दर और स्वस्थ जवान थे। चेहरा हमेशा खिला हुआ और बोली प्रेम में सनी हुई बोलते थे । ऐसे हटटे-कटटे सुन्दर नौजवान बहुत कम देख पड़ते है। बचपन से ही उनमें स्वदेशानुराग था । देश की भलाई के लिये किये जाने वाले आन्दोलनों की कथायें वे बड़ी रूचि से पड़ते थे। धीरे-धीरे उनमें क्रान्तिकारी भाव पैदा हुए । उनको बड़ी उत्सुकता हुई कि किसी ऐसे आदमी से भेंट हो जाये जो क्रान्तिकारी दल का सदस्य हो।
उस समय मैनपुरी षड़यन्त्र का मामला चल रहा था । वे शाहजहांपुर में स्कूल में शिक्षा पाते थे। मैनपुरी षड़यन्त्र में शाहजहांपुर के ही रहने वाले एक नवयुवक के नाम भी वारण्ट निकला । वह नवयुवक और कोई न था, श्री रामप्रसाद बिस्मिल थे। श्री अशफाक को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि उनके शहर में ही एक आदमी है जैसा कि वे चाहते है । किन्तु मामले से बचने के लिये श्री रामप्रसाद भगेहुए थे । जब शाही ऐलान द्वारा सब राजनैतिक कैदी छोड़ दिये गये, तब श्री रामप्रसाद शाहजहांपुर आये । श्री अशफाक को यह बात मालूम हुई। उन्होंने मिलने की कोशिश कीउनसे मिलकर षड़यन्त्र के सम्बन्ध में बातचीत करनी चाही ।
पहले तो श्री रामप्रसाद ने टालमटूल कर दी । परन्तु फिर उनके श्री अशफाक के व्यवहार और बर्ताव से वह इतने प्रसन्न हुए कि उनको अपना बहुत ही घनिष्ट मित्र बना लिया।इस प्रकार वे क्रान्तिकारी जीवन में आये। क्रान्तिकारी जीवन में पदार्पण करने के बाद से वह सदा प्रयत्न करते रहे कि उनकी भांति और मुसलमान नवयुवक भी क्रान्तिकारी दल के सदस्य बने। हिन्दु-मुसलिम एकता के वे बड़े कटटर हामी थी।